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<document>
<passage>
तभी बिशन को भारी-भरकम जूतों की आवाज़ सुनाई दी, जो तेजी से उसके पास आती जा रही थी। पीछे से आ रहा शिकारी गुस्से में ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था। मैं तुझे देख लूँगा, तू मेरा शिकार चुराकर नहीं ले जा सकता। बिशन के लिए आगे निकल भागने का रास्ता नहीं था। अगर वह सड़क से जाता तो शिकारी को साफ़ दिखाई दे जाता। इसलिए उसने खेतों के छोटे रास्ते से जाना तय किया। खेतों से आगे के रास्ते में काँटेदार झाड़ियाँ थीं। बिशन उसी रास्ते पर घुटनों के बल चलने लगा। बहुत सँभलकर चलने पर भी उसके हाथ-पाँव पर काँटों की बहुत-सी खरोंचें उभर आईं। खरोंचों से खून भी निकलने लगा। उसकी कमीज़ की एक आस्तीन भी फट गई।
वह जानता था कि कमीज़ फटने पर उसे माँ से डाँट खानी पड़ेगी। पर बिशन को इस बात का संतोष था कि वह अब तक तीतर की जान बचाने में कामयाब रहा। झाड़ी से बाहर आकर वह सोचने लगा कि कैसे पहाड़ी के कोने-से फिसलकर नीचे पहुँचा जाए, लेकिन उस कोने में घास बहुत कांटेदार थी और ओस के कारण फिसलन भी। बिशन थककर वहीं एक किनारे बैठ गया। अभी वह बैठा ही था कि उसे पाँवों की आहट सुनाई दी। आहट सुनते ही वह उठकर दौड़ पड़ा। दौड़ते-दौड़ते वह आधी पहाड़ी पार कर चुका था। उसके कपड़े पसीने से तर-ब-तर हो गए, फिर भी वह रुका नहीं और किसी तरह कर्नल के फ़ार्म हाउस के पिछवाड़े पहुँच ही गया। पिछवाड़े दरवाजा खुला था। उसने ताड़ के पेड़ का सहारा लिया और फ़ार्म हाउस के अंदर पहुँच गया। तीतर को वह बड़ी सावधानी के साथ अपने सीने से लगाए हुए था।
</passage>
<anaphoraresolved>
तभी बिशन को भारी-भरकम जूतों की आवाज़ सुनाई दी, आवाज़ तेजी से बिशन के पास आती जा रही थी। पीछे से आ रहा शिकारी गुस्से में ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था। शिकारी तुझे देख लूँगा, बिशन मेरा शिकार चुराकर नहीं ले जा सकता। बिशन के लिए आगे निकल भागने का रास्ता नहीं था। अगर बिशन सड़क से जाता तो शिकारी को साफ़ दिखाई दे जाता। इसलिए बिशन ने खेतों के छोटे रास्ते से जाना तय किया। खेतों से आगे के रास्ते में काँटेदार झाड़ियाँ थीं। बिशन उसी रास्ते पर घुटनों के बल चलने लगा। बहुत सँभलकर चलने पर भी बिशन के हाथ-पाँव पर काँटों की बहुत-सी खरोंचें उभर आईं। खरोंचों से खून भी निकलने लगा। बिशन की कमीज़ की एक आस्तीन भी फट गई।
बिशन जानता था कि कमीज़ फटने पर बिशन माँ से डाँट खानी पड़ेगी। पर बिशन को इस बात का संतोष था कि बिशन अब तक तीतर की जान बचाने में कामयाब रहा। झाड़ी से बाहर आकर बिशन सोचने लगा कि कैसे पहाड़ी के कोने-से फिसलकर नीचे पहुँचा जाए, लेकिन उस कोने में घास बहुत कांटेदार थी और ओस के कारण फिसलन भी। बिशन थककर वहीं एक किनारे बैठ गया। अभी बिशन बैठा ही था कि उसे पाँवों की आहट सुनाई दी। आहट सुनते ही वह उठकर दौड़ पड़ा। दौड़ते-दौड़ते बिशन आधी पहाड़ी पार कर चुका था। बिशन के कपड़े पसीने से तर-ब-तर हो गए, फिर भी वह रुका नहीं और किसी तरह कर्नल के फ़ार्म हाउस के पिछवाड़े पहुँच ही गया। पिछवाड़े दरवाजा खुला था। बिशन ने ताड़ के पेड़ का सहारा लिया और फ़ार्म हाउस के अंदर पहुँच गया। तीतर को बिशन बड़ी सावधानी के साथ अपने सीने से लगाए हुए था।
</anaphoraresolved>
<stemmed>
तभी बिशन क भारी-भरकम जूत क आवाज़ सुन द, जो तेज से उस पास आत जा रह थ। पीछे से आ रह शिकार गुस्स में ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रह थ। मैं तुझे देख लूँग, तू मेर शिकार चुराकर नहीं ले जा सकत। बिशन क लि आगे निकल भाग क रास्ता नहीं थ। अगर वह सड़क से जात तो शिकार क साफ़ दिखाई दे जात। इसलिए उस खेत क छोट रास्त से जाना तय किया। खेत से आगे क रास्त में काँटेदार झाड़ि थ। बिशन उस रास्त पर घुट क बल चल लग। बहुत सँभल चलन पर भी उस हाथ-पाँव पर काँट क बहुत-सी खरोंच उभर आ। खरोंच से खून भी निकल लग। उस कमीज़ क एक आस्तीन भी फट ग।
वह जान थ क कमीज़ फट पर उस माँ से डाँट खान पड़। पर बिशन क इस बात क संतोष थ क वह अब तक तीतर क जान बच में कामयाब रह। झाड़ी से बाहर आ वह सोच लग क कैसे पहाड़ क कोन-से फिसल नीचे पहुँच जाए, लेकिन उस कोन में घास बहुत कांटेदार थ और ओस क कारण फिसल भी। बिशन थक वह एक किनार बैठ ग। अभी वह बैठ ही थ क उस पाँव क आहट सुन दी। आहट सुन ही वह उठ दौड़ पड़। दौड़-दौड़ वह आध पहाड़ पार कर चुक थ। उसक कपड़ पसीन से तर-ब-तर हो ग, फिर भी वह रुक नहीं और किस तरह कर्नल क फ़ार्म हाउस क पिछवाड़ पहुँच ही ग। पिछवाड़ दरवाजा खुल थ। उस ताड़ क पेड़ क सहारा लिया और फ़ार्म हाउस क अंदर पहुँच ग। तीतर क वह बड़ सावधान क साथ अपन सीन से लग हु थ।
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<q>
बिशन क्यों भाग रहा था ?
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मैं तुझे देख लूँगा, तू मेरा शिकार चुराकर नहीं ले जा सकता।
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<lg> 2,3 </lg>
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बिशन ने खेतों के छोटे रस्ते से जाना क्यों तय किया ?
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अगर वह सड़क से जाता तो शिकारी को साफ़ दिखाई दे जाता।
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<l> 5 </l>
<lg> 5,6 </lg>
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खेतों का रास्ता कैसा था ?
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खेतों से आगे के रास्ते में काँटेदार झाड़ियाँ थीं।
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<l> 7 </l>
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कमीज़ की आस्तीन फटने पर भी बिशन को किस बात की खुशी थी ?
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पर बिशन को इस बात का संतोष था कि वह अब तक तीतर की जान बचाने में कामयाब रहा।
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<l> 13 </l>
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<q>
बिशन फार्म हाउस के अन्दर कैसे और किसके सहारे से पहुँचा ?
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उसने ताड़ के पेड़ का सहारा लिया और फ़ार्म हाउस के अंदर पहुँच गया।
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<l> 21 </l>
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<qa>
<q>
बिशन को खरोंचें क्यों लगी ?
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<a>
बहुत सँभलकर चलने पर भी उसके हाथ-पाँव पर काँटों की बहुत-सी खरोंचें उभर आईं।
</a>
<l> 9 </l>
<lg> 7,8,9 </lg>
</qa>
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