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<document>
<passage>
हवेंग तूङ बोला, “मैं ऐसा नहीं कर सकता, महाराज। मैं चोर हूँ। चोरी कर मैंने पाप किया है। मैं पापी हूँ। मैं अपवित्र हूँ। यह बीज पवित्र है। इस पवित्र बीज को वही बो सकता है, जिसने कभी चोरी नहीं की हो, धोखा नहीं दिया हो और कभी झूठ नहीं बोला हो। महाराज! आप पवित्र हैं। आप ही इस पुण्य कार्य के योग्य हैं।“
</passage>
<anaphoraresolved>
हवेंग तूङ बोला, “मैं ऐसा नहीं कर सकता, महाराज। मैं चोर हूँ। चोरी कर मैंने पाप किया है। मैं पापी हूँ। मैं अपवित्र हूँ। यह बीज पवित्र है। इस पवित्र बीज को वही बो सकता है, जिसने कभी चोरी नहीं की हो, धोखा नहीं दिया हो और कभी झूठ नहीं बोला हो। महाराज! महाराज पवित्र हैं। महाराज ही इस पुण्य कार्य के योग्य हैं।“
</anaphoraresolved>
<stemmed>
हवेंग तूङ बोल, “मैं ऐस नहीं कर सकत, महाराज। मैं चोर हूँ। चोर कर मैं पाप किया है। मैं पाप हूँ। मैं अपवित्र हूँ। यह बीज पवित्र है। इस पवित्र बीज क वह बो सकत है, जिसन कभी चोर नहीं क हो, धोखा नहीं दिया हो और कभी झूठ नहीं बोल हो। महाराज! आप पवित्र हैं। आप ही इस पुण्य कार्य क योग्य हैं।“
</stemmed>
<qa>
<q>
हवेंग तूङ ने क्या पाप किया था ?
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<a>
चोरी कर मैंने पाप किया है।
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<l> 3 </l>
</qa>
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अपवित्र कौन था ?
</q>
<a>
मैं अपवित्र हूँ।
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<l> 5 </l>
</qa>
<qa>
<q>
कौन सी वस्तु पवित्र थी ?
</q>
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यह बीज पवित्र है।
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<l> 6 </l>
</qa>
<qa>
<q>
मूल्यवान बीज कैसा व्यक्ति बो सकता था ?
</q>
<a>
इस पवित्र बीज को वही बो सकता है, जिसने कभी चोरी नहीं की हो, धोखा नहीं दिया हो और कभी झूठ नहीं बोला हो।
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<l> 7 </l>
</qa>
<qa>
<q>
मूल्यवान बीज को कौन बो सकता है ?
</q>
<a>
आप ही इस पुण्य कार्य के योग्य हैं।
</a>
<l> 9 </l>
</qa>
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